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Input
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| Output
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410
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|---|---|---|
यह कहकर बढ एक कोने से अपने खेलमे का डंडा उठा लाया और जापटे के पास वेरोचित भाव से खड़ा दो गया, मानों सिपादियों पे उनकी रक्षा कर रहा है ।
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बालक- हम सिपाही को मालेंगे ।
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यह कहकर वह एक कोने से अपने खेलने का डंडा उठा लाया और आपटे के पास वीरोचित भाव से खड़ा हो गया, मानो सिपाहियों से उनकी रक्षा कर रहा है ।
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में इस योग्य भो नहीं हूँ कि आपको और ताक सकूँ ।
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मैं आपके अनुमान से कहीं भ्रष्ट हूँ ।
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मैं इस योग्य भी नहीं हूँ कि आपकी ओर ताक सकूँ ।
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' यह कहते-कहते वह उनके परों पर गिर पढ़ी ।
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मुझे क्षमा कीजिए, मुझ पर दया कीजिए ।
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यह कहते-कहते वह उनके पैरों पर गिर पड़ी ।
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बच, ऐसी कोई युक्ति निकालिए कि जब्ता के घामिक भावों को चोट पहुँचे ।
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काँग्रेसवालों ने धर्म की आड़ लेकर इतनी शक्ति बढ़ायी है ।
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बस, ऐसी कोई युक्ति निकालिए कि जनता के धार्मिक भावों को चोट पहुँचे ।
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उसे युवक ने, जो रमेश के सामने कूदकर भागा था, धुलोस के प्रधान से सारा कच्चा चिट्ठा बयान झूर दिया था ।
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रमेश चुपचाप पकड़ा गया था ।
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उसी युवक ने, जो रमेश के सामने कूदकर भागा था, पुलिस के प्रधान से सारा कच्चा चिट्ठा बयान कर दिया था ।
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छेठों के घरें में घी के चिराप चलते थे ।
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भद्र समुदाय बगलें बजाता था ।
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सेठों के घरों में घी के चिराग जलते थे ।
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वे बाते जो अब तक मारे भय के किसी की ज़बात पर ने आती थीं, अब अखबारों में निकलने लगीं |
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अखबारों में रमेश के हथकंडे छपने लगे ।
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वे बातें जो अब तक मारे भय के किसी की जबान पर न आती थीं, अब अखबारों में निकलने लगीं ।
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उन्हें पढ़कर पता चलता था कि श्मेश ने कितता अंघेर मचा रखा था ।
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वे बातें जो अब तक मारे भय के किसी की जबान पर न आती थीं, अब अखबारों में निकलने लगीं ।
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उन्हें पढ़कर पता चलता था कि रमेश ने कितना अँधेर मचा रखा था ।
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बोला--क्या चाहती दो ?
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यशवंत अखबार पढ़ रहा था ।
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बोला- क्या चाहती हो ?
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वादिर--इसका सबुत मेरे पास है, हालाँकि नादिर ने कभो किसी को सबूत नहीं दिया ।
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वजीर- जी हाँ, क्योंकि दगा की सजा कत्ल है और कोई बिला सबब अपने कत्ल पर रजामंद न होगा ।
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नादिर- इसका सबूत मेरे पास है, हालाँकि नादिर ने कभी किसी को सबूत नहीं दिया ।
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किसका छेटर- राइटर सब्से अच्छा है ?
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संध्या-समय पंडितजी नईम के कमरे में आये और बोले- यार, एक लेटर-राइटर (पत्र-व्यवहार-शिक्षक) की आवश्यकता है ।
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किसका लेटर-राइटर सबसे अच्छा है ?
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अक्षर विगए-बिगढ़ जाते थे, इसलिए कई बार लिखना पडा ।
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जब भोजन करके लौटे तो चक्रधर ने अपने किवाड़ बंद कर लिये, और खूब बना-बना कर पत्र लिखा ।
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अक्षर बिगड़-बिगड़ जाते थे, इसलिए कई बार लिखना पड़ा ।
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यार छोग तो ताक में थे ही, पत्र उड़ा लाये, और ,खूब मज़े छे-लेकर पढ़ा ।
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तब आपने उसे इत्र में बसाया, दूसरे दिन पुस्तकालय में निर्दिष्ट स्थान पर रख दिया ।
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यार लोग तो ताक में थे ही, पत्र उड़ा लाये और खूब मजे ले-लेकर पढ़ा ।
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पर वे आलपी जीव थे, अधिकांश सप्रय भोजन और विश्राम में व्यतीत किया करते थे ।
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यदि पंडितजी ज्यादा मेहनत करने के योग्य होते तो यह मुश्किल आसान हो जाती ।
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पर वे आलसी जीव थे, अधिकांश समय भोजन और विश्राम में व्यतीत किया करते थे ।
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तुम्हें दिखाने के लिए पहनकर चली आईं ।
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आज उनसे मिलने गयी थी, यह हार देखा, बहुत पसंद आया ।
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तुम्हें दिखाने के लिए पहनकर चली आयी ।
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कहीं चोरी हो जाय तो द्वार तो बनवाना दी पढ़े, ऊपर से बदनामी भी हो ।
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पंडित- दूसरे की चीज नाहक माँग लायी ।
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कहीं चोरी हो जाय तो हार तो बनवाना ही पड़े, ऊपर से बदनामी भी हो ।
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मर्दाने में गाना-बजाना हो रह्दा था ।
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पिता के मुँह से ऐसे शब्द निकल सकते हैं! संसार में ऐसे प्राणी भी हैं! होली के दिन थे ।
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मर्दाने में गाना-बजाना हो रहा था ।
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भगर तुम्दारा अपने दिल पर काबू नहीं है तो मेरा भो अपने दिछ पर काबू नहों है ।
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सीतासरन- मैं अब इस मनहूसत का अन्त कर देना चाहता हूँ ।
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अगर तुम्हारा अपने दिल पर काबू नहीं है तो मेरा भी अपने दिल पर काबू नहीं है ।
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सारे ऋडड़े तर हो गये ।
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हंटर उतार लिया और डाइनिंगरूम की ओर चले; लेकिन अभी तक एक कदम दरवाजे के बाहर ही था कि सेठ उजागरमल ने पिचकारी छोड़ी ।
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सारे कपड़े तर हो गये ।
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हृटर पढ़े तो नशा हिरन हो गया ।
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बेचारे सोचे हुए थे कि साहब खुश होकर इनाम देंगे ।
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हंटर पड़े तो नशा हिरन हो गया ।
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हरिहर--फिर तुम्हीं सोचों ।
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झींगुर- क्या, बगला मारे पखना हाथ ।
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हरिहर- फिर तुम्हीं सोचो ।
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मोंगुर-- ऐसी जुगुत निकालो कि फिर पनपने न पावे ।
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हरिहर- फिर तुम्हीं सोचो ।
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झींगुर- ऐसी जुगुत निकालो कि फिर पनपने न पावे ।
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यह एक रहस्य है कि भलाइयों में जितना दंष दोता है, घुराइयों में उतना हो प्रेम ।
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इसके बाद फुस-फुस करके बातें होने लगीं ।
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वह एक रहस्य है कि भलाइयों में जितना द्वेष होता है, बुराइयों में उतना ही प्रेम ।
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पिद्वान् विद्वान को देखऋर, साधु साधु को देखकर और कवि कवि को देखकर जलता है ।
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वह एक रहस्य है कि भलाइयों में जितना द्वेष होता है, बुराइयों में उतना ही प्रेम ।
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विद्वान् विद्वान् को देखकर, साधु साधु को देखकर और कवि कवि को देखकर जलता है ।
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ब॒राई से पब घृणा करते हैँ, इसलिए घरो' में परस्पर प्रेम होता है ।
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पर एक चोर पर आफत आयी देख दूसरा चोर उसकी मदद करता है ।
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बुराई से सब घृणा करते हैं, इसलिए बुरों में परस्पर प्रेम होता है ।
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ह उसका स्वरूप, समय और क्रम ठोक किया गया ।
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षड्यंत्र रचने की विधि सोची गयी ।
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उसका स्वरूप, समय और क्रम ठीक किया गया ।
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मार लिया दुश्मन को, झब कहाँ जाता है ! दूसरे दिन सहोंगुर काम्र पर जाने छगा, तो पहले बुदूधू फे घर पहुँचा ।
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झींगुर चला, तो अकड़ा जाता था ।
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मार लिया दुश्मन को, अब कहाँ जाता है ! दूसरे दिन झींगुर काम पर जाने लगा, तो पहले बुद्धू के घर पहुँचा ।
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देवी दो शरण जानेवाऊे को अभय दान मिल जाता था ।
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अब क्या किया जाय ?
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देवी की शरण जानेवाले को अभय-दान मिल जाता था ।
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परम्परा से यही प्रधा थी ।
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देवी की शरण जानेवाले को अभय-दान मिल जाता था ।
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परम्परा से यही प्रथा थी ?
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वादिर लेला का रुख देखता था, लेला नादिर का |
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उनका दाम्पत्य-जीवन आदर्श था ।
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नादिर लैला का रुख देखता था, लैला नादिर का ।
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उन महर्नों में अब शफाखाने, मदरसे और पुस्त- कालय थे ।
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जहाँ बादशाहों की महलसरा में बेगमों के मुहल्ले बसते थे, दर्जनों और कौड़ियों से उनकी गणना होती थी, वहाँ लैला अकेली थी ।
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उन महलों में अब शफाखाने, मदरसे और पुस्तकालय थे ।
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बादशाह नादिर था, पर अद्वियार लेला के हाथो में था ।
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यह सारी कतर-ब्योंत लैला ने की थी ।
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बादशाह नादिर था, पर अख्तियार लैला के हाथों में था ।
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बलवान मनुष्य प्रायः दयाल होता है ।
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मथुरा को उनकी दशा पर दया आयी ।
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बलवान मनुष्य प्राय: दयालु होता है ।
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में तो चला ।
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दूसरे- जादू वह जो सिर पर चढ़ के बोले ! तीसरे- अब जलसा बरखास्त कीजिए ।
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मैं तो चला ।
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घुसे कहा था कि इसे पढ़ना ।
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परमानंद- बाबूजी ही ने तो लिखकर अपनी मेज के अंदर रख दिया था ।
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मुझसे कहा था कि इसे पढ़ना ।
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दाऊद--मैंने एक मुपलमान युवक को हत्या कर डाली है ।
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हम मुसलमान हैं, जिसे एक बार अपनी शरण में ले लेते हैं उसकी जिंदगी-भर रक्षा करते हैं ।
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दाऊद- मैंने एक मुसलमान युवक की हत्या कर डाली है ।
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तू जानता है, तूने मुझ्ा पर झितना बढ़ा अत्याचार किया है ?
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मैं उसी युवक का अभागा पिता हूँ, जिसकी आज तूने इतनी निर्दयता से हत्या की है ।
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तू जानता है, तूने मुझ पर कितना बड़ा अत्याचार किया है ?
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मेरी सारी अभिलाषाएं उस्रो पर निर्भर थीं ।
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तूने मेरे खानदान का निशान मिटा दिया है ! मेरा चिराग गुल कर दिया ! आह, जमाल मेरा इकलौता बेटा था ।
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मेरी सारी अभिलाषाएँ उसी पर निर्भर थीं ।
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मेरे नंतिक बल छा आधार पहले ही नष्ट दो चुका था ।
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अब भी बरसात में दो महीने मुग्दर फेर लेता हूँ; लेकिन उस समय भय के मारे बुरा हाल था ।
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मेरे नैतिक बल का आधार पहले ही नष्ट हो चुका था ।
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वे सथ सत्ययुग में थाया करते थे ।
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न गोवर्द्धनधारी ने सुध ली, न नृसिंह भगवान् ने ।
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वे सब सत्ययुग में आया करते थे ।
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न प्रतिज्ञा कुछ काम आई, न शपथ का छुछ असर हुआ ।
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वे सब सत्ययुग में आया करते थे ।
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न प्रतिज्ञा कुछ काम आयी; न शपथ का कुछ असर हुआ ।
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खाबसामा बेचारा अपनी बात का घी था ।
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विधना ने मेरी प्रतिज्ञा सुदृढ़ रखने के लिए शपथ को यथेष्ट न समझा ।
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खानसामा बेचारा अपनी बात का धनी था ।
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बढ़ा सत्यवादो, वीर पुरुष था ।
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थप्पड़ खाये, ठोकर खायी, दाढ़ी नुचवायी, पर न खुला, न खुला ।
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बड़ा सत्यवादी, वीर पुरुष था ।
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एक ही सुभर है ।
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मैं पहले ही चौंका था कि हो न हो पाखंडी है; लेकिन मेरी सरहज ने धोखा दिया, नहीं तो मैं ऐसे पाजियों के पंजे में कब आनेवाला था ।
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एक ही सुअर है ।
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अब तो कोई बात भी नहीं पूछता छि मरतो है या भोती है ।
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इससे तो पहले ही भली थी ।
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अब तो कोई बात भी नहीं पूछता कि मरती है या जीती है ।
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हमें तो तुम्दारा हो सहारा है ।
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जागेश्वरी- बेटी, तुम्हें न हो, हमको तो है ।
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हमें तो तुम्हारा ही सहारा है ।
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दूसरे दिन यह बात मुहल्लेवालों के कार्नों में पहुँच गई ।
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किसी दूसरे प्राणी का आश्रय लेना भूल है ।
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दूसरे दिन यह बात मुहल्लेवालों के कानों में पहुँच गयी ।
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जब कोई अवस्था" भरसाध्य दो जातो है तो हम उस पर व्यंग्य करने लगते हैं ।
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दूसरे दिन यह बात मुहल्लेवालों के कानों में पहुँच गयी ।
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जब कोई अवस्था असाध्य हो जाती है तो हम उस पर व्यंग्य करने लगते हैं ।
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कई सज्वत हृदयनाथ के पास आये और पिर झुकाढर बेठ गये ।
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लेकिन जैसे अपने बच्चे के दौड़ते-दौड़ते धम से गिर पड़ने पर हम पहले क्रोध के आवेश में उसे झिड़कियाँ सुनाते हैं, इसके बाद गोद में बिठाकर आँसू पोंछने और फुसलाने लगते हैं; उसी तरह इन भद्र पुरुषों ने व्यंग्य के बाद इस गुत्थी के सुलझाने का उपाय सोचना शुरू किया ।
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कई सज्जन हृदयनाथ के पास आये और सिर झुकाकर बैठ गये ।
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जानता कि यद इतना फिसाद खड़ा करेगा तो फाठक में घुछने ही न देता |
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न जाने किस बुरी साइत से मैंने इसके रुपये लिये ।
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जानता कि यह इतना फिसाद खड़ा करेगा तो फाटक में घुसने ही न देता ।
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मेने पहली बार आदमी पहचानने में घेखा खाया ।
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देखने से तो ऐसा सीधा मालूम होता था कि गऊ है ।
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मैंने पहली बार आदमी पहचानने में धोखा खाया ।
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बरगद के नोचे बिलकुल पन्नाठा था ।
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मिस्टर सिनहा घर से निकले और अकेले जगत पाँडे को मनाने चले ।
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बरगद के नीचे बिलकुल सन्नाटा था ।
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परशुराम -- आओ भाभी, क्या अभो सोई' नहों, दस तो बज गये होंगे ।
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मर्यादा- मैं गुसलखाने में छिपी जाती हूँ ।
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परशुराम- आओ भाभी, क्या अभी सोयी नहीं, दस तो बज गये होंगे ।
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भाभो--वासुदेव को देखने को जी चादृता था भेया, क्या सो गया ?
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परशुराम- आओ भाभी, क्या अभी सोयी नहीं, दस तो बज गये होंगे ।
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भाभी- वासुदेव को देखने को जी चाहता था भैया, क्या सो गया ?
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परझुराम -हाँ, वह तो अभो रोते-रोते सो गया है ।
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भाभी- वासुदेव को देखने को जी चाहता था भैया, क्या सो गया ?
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परशुराम- हाँ, वह तो अभी रोते-रोते सो गया है ।
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वायुदेव को प्यार करने के बहाने तुम इध घर पर अधिकार जमाना चाहतो दो ।
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मर्यादा- (बाहर आकर) होनहार नहीं है, तुम्हारी चाल है ।
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वासुदेव को प्यार करने के बहाने तुम इस घर पर अधिकार जमाना चाहती हो ।
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कल से गोमतो पर फहीं वोराने में नक्शा जमे ।
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मीर- बस, यही एक तदबीर है कि घर पर मिलो ही नहीं ।
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कल से गोमती पर कहीं वीराने में नख्शा जमे ।
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इसके लिए आउकों पछतादा पड़ेगा ।
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क्रोध में आकर बोली- आप मुझे यहाँ रोककर मेरा अपमान कर रहे हैं ।
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इसके लिए आपको पछताना पड़ेगा ।
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सुम्दारे वे ग्रेम-पत्र, जो तुमने मुम्के लिखे हैं, मेरे जीवन को सबसे बह़ी सम्पत्ति रहेंगे ।
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चक्रधर- डियर डार्लिंग, इतनी जल्द न भूल जाओ, इतनी निर्दयता न दिखाओ ।
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तुम्हारे वे प्रेम-पत्र, जो तुमने मुझे लिखे हैं, मेरे जीवन की सबसे बड़ी सम्पत्ति रहेंगे ।
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देखो तो जरा मेरे हृदय पर हाथ रखकर, कसी धड़कन हो रहो दे ।
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तुम्हारे अनुरोध से मैंने यह वेष धारण किया, अपना संध्या-हवन छोड़ा, यह अचार-व्यवहार ग्रहण किया ।
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देखो तो जरा, मेरे हृदय पर हाथ रखकर, कैसी धड़कन हो रही है ।
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इसी से तो मेंने तुम्हें छक्रमान का खिताब दिया है ।
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मेरे अमामे को कौन देखेगा ?
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इसी से तो मैंने तुम्हें लुकमान का खिताब दिया है ।
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कहों तुम कप देर पहले आ जाते, तो मुझे इतवा दर्दे-सर न उठाना पढ़ता ।
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बस, यही तय रहा ।
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कहीं तुम जरा देर पहले आ जाते, तो मुझे इतना दर्दे-सर न उठाना पड़ता ।
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मगर नादिरशादह हीरा न पाकर भो दुः्खी न था ।
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राज्य बच जाने की उतनी खुशी न थी, जितनी हीरे के बच जाने की ।
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मगर नादिरशाह हीरा न पाकर भी दुःखी न था ।
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सामने डर लगा रहता है > कहीं उनको नियाह न पढ़ जाय ।
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मुझे कभी-कभी झपकियाँ आ जाती हैं ।
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सामने डर लगा रहता है कि कहीं उनकी निगाह न पड़ जाय ।
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कोई दूसरा छांख रुपये भो देता, तो जगद न छोड़ता ।
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मैं अपने ऊपर बहुत जब्र कर रहा हूँ ।
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कोई दूसरा लाख रुपये भी देता, तो जगह न छोड़ता ।
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चक्रपर ने कृतज्ञता-पूर्ण ृष्टि से देखा और वहाँ जाकर बेठ गये ।
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नईम- अरे भाई, यह जन्नत है जन्नत ! लेकिन दोस्त की खातिर भी तो है कोई चीज ?
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चक्रधर ने कृतज्ञतापूर्ण दृष्टि से देखा और वहाँ जाकर बैठ गये ।
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शिक्षा-विभाग ही में नौकर भी थे, मगर इप सस्झार छो केसे प्रिटा देते, जो परम्पश से हृदय में लमा हुआ था, कि तीसरे बेटें को पीठ पर होनेवाली कन्या अभागिनों होती है, या पिता को लेती & या माता छो, या अपने की ।
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पिता का नाम था पंडित दामोदरदत्त, शिक्षित आदमी थे ।
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शिक्षा-विभाग ही में नौकर भी थे; मगर इस संस्कार को कैसे मिटा देते, जो परम्परा से हृदय में जमा हुआ था, कि तीसरे बेटे की पीठ पर होनेवाली कन्या अभागिनी होती है, या पिता को लेती या माता को, या अपने को ।
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ईश्मर चाहेंगे तो सब कुशल दी होगी, गानेवालियों को बुला लो, नहीं लोग कहेंगे, तोन बेटे हुए तो” कसी फूली फिरती थों, एक बेटी हो गईं तो घर में कुदराम मच गया ।
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किसी बाँझ के घर जाती तो उसके दिन फिर जाते ! दामोदरदत्त दिल में तो घबराये हुए थे, पर माता को समझाने लगे- अम्माँ, तेंतर-वेतर कुछ नहीं, भगवान् की जो इच्छा होती है, वही होता है ।
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ईश्वर चाहेंगे तो सब कुशल ही होगा; गानेवालियों को बुला लो, नहीं लोग कहेंगे, तीन बेटे हुए तो कैसे फूली फिरती थीं, एक बेटी हो गयी तो घर में कुहराम मच गया ।
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माता- भरे बेटा, तुम क्या जानो इन बातों को, मेरे सिर तो बीत चुकी है, आण नहीं में समाया हुआ है ।
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ईश्वर चाहेंगे तो सब कुशल ही होगा; गानेवालियों को बुला लो, नहीं लोग कहेंगे, तीन बेटे हुए तो कैसे फूली फिरती थीं, एक बेटी हो गयी तो घर में कुहराम मच गया ।
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माता- अरे बेटा, तुम क्या जानो इन बातों को, मेरे सिर तो बीत चुकी है, प्राण नहों में समाया हुआ है ।
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तभी से तेंतर छा वाम सुनते हो मेरा कछेझा काँप उठता है ।
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तेंतर ही के जन्म से तुम्हारे दादा का देहांत हुआ ।
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तभी से तेंतर का नाम सुनते ही मेरा कलेजा काँप उठता है ।
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सावज--अच्छा यह न सही, ए७ बार उन्हें प्रेमालिंगन करने देता ।
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निरुपमा- चलो, गाली देती हो ।
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भावज- अच्छा यह न सही, एक बार उन्हें प्रेमालिंगन करने देना ।
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भावश--हाँ, वह यह सब विषय मेरे हो द्वारा तय किया ऋरते हैं ।
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निरुपमा- तुम तो यों बातें कर रही हो मानो उनकी प्रतिनिधि हो ।
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भावज- हाँ, वह यह सब विषय मेरे ही द्वारा तय किया करते हैं ।
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अब तुप्त मेरे एक पेसे के भी देनदार नहीं हो ।
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अगर कुछ आता भी हो, तो मैंने माफ कर दिया; यहाँ भी, वहाँ भी ।
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अब तुम मेरे एक पैसे के भी देनदार नहीं हो ।
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असल में मेने तुमसे जो कर्ज लियाथा, वहो अदा कर रहा हूँ ।
|
अब तुम मेरे एक पैसे के भी देनदार नहीं हो ।
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असल में मैंने तुमसे जो कर्ज लिया था, वही अदा कर रहा हूँ ।
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उस एहसान का बदला चुकाता मेरो ताकत से बादर है ।
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वह शराफत मुझे याद है ।
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उस एहसान का बदला चुकाना मेरी ताकत से बाहर है ।
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इस वक्त भी तुम्हें रायों कौ जरूरत हो, तो जितने चाहों, ले सझते हो ।
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तुम सच्चे और शरीफ आदमी हो, मैं तुम्हारी मदद करने को हमेशा तैयार रहूँगा ।
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इस वक्त भी तुम्हें रुपयों की जरूरत हो, तो जितने चाहो, ले सकते हो ।
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साधने आये ।
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कोई काटता है हमारे वचन को ?
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सामने आये ।
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इन बातों से मुंख को खुख प्राप्त होगा ।
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इसके अनेक प्रकार हैं, देवताओं के गुण गाओ, ईश्वर-वंदना करो, सत्संग करो और कठोर वचन न बोलो ।
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इन बातों से मुख को सुख प्राप्त होगा ।
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श्रोतापण--मद्दाराज, आपके सम्मुख कौन मुँह खोल सकता है ।
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है कोई, बोले ।
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श्रोतागण- महाराज, आपके सम्मुख कौन मुँह खोल सकता है ।
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आप ही बताने की कृपा छोजिए ।
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श्रोतागण- महाराज, आपके सम्मुख कौन मुँह खोल सकता है ।
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आप ही बताने की कृपा कीजिए ।
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आप ऋाँसा देतो हैं ।
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मैं न जाऊँगा ।
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आप झाँसा देती हैं ।
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शाम हो गई थी, कई भगी एछ पेड़ के नोचे चटाइयों पर बठे शहताई और तबला बजा रहे थे ।
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यह निश्चय करके वह घूमता-फिरता भंगियों के मुहल्ले में पहुँचा ।
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शाम हो गयी थी, कई भंगी एक पेड़ के नीचे चटाइयों पर बैठे शहनाई और तबल बजा रहे थे ।
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मित्रगण एक-एक छरके आने रंगे ।
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कानूनी किताबों की आलमारियाँ हटवा दीं, फर्श बिछवा दिया और शाम को मित्रों का इंतजार करने लगा, जैसे चिड़िया पंख फैलाये बहेलियों को बुला रही हो ।
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मित्रगण एक-एक करके आने लगे ।
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छुफल झो देखते हुए तो में यही कहूँगा कि जो कुछ हुआ, बहुत अच्छा हुआ ।
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कोई युक्ति, कोई तर्क, कोई चुटकी मुझ पर इतना स्थायी प्रभाव न डाल सकती थी ।
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सुफल को देखते हुए तो मैं यही कहूँगा कि जो कुछ हुआ बहुत अच्छा हुआ ।
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पाठ स्वयं अनुपान कर सकते हैं ।
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अब विपत्ति-कथा को क्यों तूल दूँ ।
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पाठक स्वयं अनुमान कर सकते हैं ।
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ब्राह्मण नहीं, खुद ईंदबर ही क्यों न हों, रिशवत खानेवाले उन्हें भी चूस ही लेंगे ।
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अपने गौं पर कोई नहीं चूकता ।
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ब्राह्मण नहीं खुद ईश्वर ही क्यों न हों, रिश्वत खानेवाले उन्हें भी चूस लेंगे ।
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मुझे देखकर सब' छलते हैं और इसी बद्ाने से मुझे नोचा दिखाता चाहते हैं ।
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वास्तव में इस तिरस्कार का कारण ईर्ष्या है ।
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मुझे देखकर सब जलते हैं और इसी बहाने से मुझे नीचा दिखाना चाहते हैं ।
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जो होना है वह तो होगा द्वी, पहले दो से क्यों उन्हें शोक में डुबाऊँ ।
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इसलिए अब तक मैंने जो बात गुप्त रखी थी, वह आज विवश होकर आपसे प्रकट करता हूँ और आपसे साग्रह निवेदन करता हूँ कि आप इसे गोपनीय समझिएगा और किसी दशा में भी उन लोगों के कानों में इसकी भनक न पड़ने दीजिएगा ।
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जो होना है वह तो होगा ही, पहले ही से क्यों उन्हें शोक में डुबाऊँ ।
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' उसके सभी लक्षण प्रकट होते जाते हैं ।
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मुझे 5-6 महीनों से यह अनुभव हो रहा है कि मैं क्षय रोग से ग्रसित हूँ ।
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उसके सभी लक्षण प्रकट होते जाते हैं ।
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जब यह निश्चय ढे कि में ससार में थोड़े हो दिनों का मेहमान हूं तो मेरे लिए विवाह की कल्पना करना भी पाय है ।
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अगर माता-पिता से यह कह दूँ तो वह रो-रोकर मर जायेंगे ।
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जब यह निश्चय है कि मैं संसार में थोड़े ही दिनों का मेहमान हूँ तो मेरे लिए विवाह की कल्पना करना भी पाप है ।
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सब मुफ्त में ज़मीन जोताना चाहते हैँ ।
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जमींदार को कुछ-न-कुछ सख्ती करनी ही पड़ती है, मगर अब यह हाल है कि हमने जरा चूँ भी की तो उन्हीं गरीबों की त्योरियाँ बदल जाती हैं ।
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सब मुफ्त में जमीन जोतना चाहते हैं ।
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यह कहकर गिन्नियों कौ एक गड़डी निकालकर मेज़ पर रस दी ।
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सत्यदेव- हुजूर आपके हाथ में सबकुछ है ।
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यह कहकर गिन्नियों की एक गड्डी निकालकर मेज पर रख दी ।
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सत्यदेव-- दाँ, इससे कौन इनकार कर सकता है |
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सिनहा- मैं चाहूँ तो महीनों लटका सकता हूँ ।
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सत्यदेव- हाँ, इससे कौन इनकार कर सकता है ।
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मर्यादा--में परमात्मा को साक्षी देती हूँ कि मेने उसे अपना अंग भौ स्पर्श नहीं करने दिया ।
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परशुराम- यहाँ आते तो और भी लज्जा आनी चाहिए थी ।
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मर्यादा- मैं परमात्मा को साक्षी देती हूँ, कि मैंने उसे अपना अंग भी स्पर्श नहीं करने दिया ।
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नौचा करता पहने हुए था ।
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मर्यादा- साँवला-सा छोटे डील का आदमी था ।
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नीचा कुरता पहने हुए था ।
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वह आदमी थोड़ी देर के बाद चढा गया और एक बुढ़िया आकर मुझ्झे भांति-भाँति के प्रलोभन देने छपी ।
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रोने लगी ।
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वह आदमी थोड़ी देर के बाद चला गया और एक बुढ़िया आकर मुझे भाँति-भाँति के प्रलोभन देने लगी ।
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तुम्दारा एक घर छूठ गया ।
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दूसरे दिन दोनों फिर मुझे समझाने लगे कि रो-रोकर जान दे दोगी, मगर यहाँ कोई तुम्हारी मदद को न आयेगा ।
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तुम्हारा एक घर छूट गया ।
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इम तुम्दें उससे कहों अच्छा घर देंगे जहाँ तुम सोने के कौर खाभोगी और सोने से #द जाओगी ।
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तुम्हारा एक घर छूट गया ।
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हम तुम्हें उससे कहीं अच्छा घर देंगे जहाँ तुम सोने के कौर खाओगी और सोने से लद जाओगी ।
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इप घर में तुम्दारे लिए स्थान नहीं है ।
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मैं तुम्हारा ही कहना मान लेता हूँ कि तुमने अपने सतीत्व की रक्षा की, पर मेरा हृदय तुमसे घृणा करता है, तुम मेरे लिए फिर वह नहीं हो सकती जो पहले थीं ।
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इस घर में तुम्हारे लिए स्थान नहीं है ।
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कल पगछी सुशीला ने कितवी उमंगों से मेरा शख्ञार किया था, कितने प्रेम से बालों में फूल गूथे थे ।
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आभूषणों से जिसे प्रेम हो वह जाने, यहाँ तो इनको देखकर आँखें फूटती हैं; धन-दौलत पर जो प्राण देता हो वह जाने, यहाँ तो इसका नाम सुनकर ज्वर-सा चढ़ आता है ।
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कल पगली सुशीला ने कितनी उमंगों से मेरा शृंगार किया था, कितने प्रेम से बालों में फूल गूँथे थे ।
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