Dataset Viewer
	| text
				 stringlengths 0 345 | 
|---|
| 
	एकादश स्कन्ध  | 
| 
	श्रीमद्भागवत  | 
| 
	अध्याय १४  | 
| 
	अथ चतुदंशो ऽध्यायः  | 
| 
	भक्तियोगको महिमा र ध्यानविधिको वर्णन  | 
| 
	उद्धव उवाच उद्धवले भने  | 
| 
	वदन्ति कृष्ण श्रेयांसि बहूनि बरह्मवादिनः ।  | 
| 
	तेषां विकल्पप्राघान्यमुताहो एकमुख्यता ॥ १॥  | 
| 
	पदढार्थ  | 
| 
	कृष्ण  हे श्रीकृष्ण  | 
| 
	ब्रह्मवादिनः  वेदवादीहरू  | 
| 
	श्रेयांसि  कल्याणका साधन  | 
| 
	बहूनि  धेरै  | 
| 
	वदन्ति  बतांछन्  | 
| 
	तेषां  तिनीहरूमा  | 
| 
	विकल्पप्राधान्यं  कहिले कुनै र  | 
| 
	कहिले कुनै मात्र प्रधान छ  | 
| 
	उताहो  अथवा  | 
| 
	एकमुख्यता  कुनै एकमा चाहं  | 
| 
	प्रधानता छ  | 
| 
	ताक्यार्थ हे श्रीकृष्ण ! वेदवादीहरूले आत्मकल्याणका धेरै किसिमका साधनहरू बताएका  | 
| 
	छन् । तिनमा आआफनो दुष्टिले सबे मुख्य छन् अथवा एदे मात्र मुख्य छ ?  | 
| 
	अ  भ क  | 
| 
	भवतोदाहृतः स्वामिन् भक्तियोगो ऽनपेक्षितः।  | 
| 
	निरस्य सवतः सद्खं येन त्वस्याविशन्मनः ॥ २॥  | 
| 
	पदढार्थ  | 
| 
	स्वामिन्  हे प्रभ  | 
| 
	भवता  हजुर्रारा  | 
| 
	अनपेक्षितः  निष्काम  | 
| 
	भक्तियोगः  भक्तियोग चाहं  | 
| 
	उदाहतः  परमात्मप्राप्तिको  | 
| 
	साधन हो भनेर बताइयो  | 
| 
	येन  जुन भक्तियोगद्रारा  | 
| 
	४५  | 
| 
	सवतः  सने विषयबाट  | 
| 
	सङ्खं  आसक्तिलाई  | 
| 
	निरस्य  हटाएर  | 
| 
	मनः  मन  | 
| 
	त्वयि  हजुरमा  | 
| 
	आविद्ेत्  लागोस्  | 
| 
	ताक्यार्थ हे प्रभु! हजुरले निष्काम भक्तियोग परमात्मप्राप्तिको साधन हो भनेर बताउनुभयो,  | 
| 
	त्यस्तो भक्तियोगद्रारा सबै विषयको आसक्तिबाट रहित भएको मन हजुरमा लागोस् ।  | 
| 
	श्रीभगवानुवाच भगवान् श्रीकृष्णले भन्नुभयो  | 
| 
	काटेन नष्टा प्रख्ये वाणीयं वेदसंज्ञिता ।  | 
| 
	मयादो बह्यणे प्रोक्ता धर्मों यस्यां मदात्मकः ॥ ३॥  | 
| 
	पदार्थ  | 
| 
	इयं  यो  | 
| 
	वेदसंज्ञिता  वेदनामक  | 
End of preview. Expand
						in Data Studio
					
	No dataset card yet
- Downloads last month
- 10
